Guru Nanak Jayanti – गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक थे, जो एक धर्म है जो भारत में पंजाब क्षेत्र में उत्पन्न हुआ। उनका जन्म 1469 में तलवंडी में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है। उनके उपदेशों और शिक्षाओं ने सिख धर्म की नींव रखी, जो आज दुनिया भर में लगभग 25 मिलियन लोगों द्वारा प्रचलित है।
गुरु नानक(Guru Nanak) देव जी का मानना था कि एक ही ईश्वर है, जिसे वह “वाहेगुरु” कहते थे। उन्होंने लोगों को सिखाया कि ईश्वर से प्रेम करना और उसकी सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने लोगों को अहंकार, क्रोध और लोभ से दूर रहने का भी उपदेश दिया।
गुरु नानक(Guru Nanak) देव जी ने अपने जीवन का अधिकांश समय यात्रा में बिताया, लोगों को उनके उपदेश सुनाते हुए। उन्होंने भारत, अफगानिस्तान और मध्य पूर्व की कई जगहों की यात्रा की। उनकी यात्राओं के दौरान, उन्होंने सभी धर्मों के लोगों से मुलाकात की और उनसे बातचीत की। उन्होंने लोगों को सिखाया कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की ओर ले जाते हैं और सभी लोगों को समान माना जाना चाहिए।
गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म के पांच मूलभूत सिद्धांतों को स्थापित किया:
- नाम: ईश्वर का नाम लेना और उस पर ध्यान करना।
- कीर्तन: ईश्वर की महिमा का गायन करना।
- निम्रता: अहंकार से दूर रहना।
- सेवा: दूसरों की मदद करना।
- संतोक: ईश्वर की इच्छा से संतुष्ट रहना।
गुरु नानक(Guru Nanak) देव जी ने सिखों को एक अलग पहच दी और उन्हें एकजुट किया। उन्होंने सिखों को एक विशेष चिह्न पहनने और उनके बाल नहीं कटवाने का भी उपदेश दिया। उन्होंने सिखों को एक साथ मिलकर भोजन करने और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करने का भी निर्देश दिया।
गुरु नानक(Guru Nanak) देव जी का 1539 में करतारपुर में निधन हो गया, जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है। उनका समाधि स्थल आज भी एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
गुरु नानक(Guru Nanak) देव जी के उपदेश और शिक्षाएं आज भी सिखों और दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणादायक हैं। उनका जीवन एक साधारण, प्रेमपूर्ण और निस्वार्थ जीवन जीने का एक आदर्श है।
गुरु नानक(Guru Nanak) जी के 10 प्रेरणादायक उद्धरण
- “जगतिक प्रेम को जला दो, उसकी राख को मलकर स्याही बना लो, दिल को कलम बना लो, बुद्धि को लेखक बनाओ, वही लिखो जिसका कोई अंत या सीमा नहीं है।”
- “एक ही ईश्वर है। उसका नाम सत्य है; वह रचयिता है। वह किसी से नहीं डरता; वह बिना द्वेष के है। वह कभी नहीं मरता; वह जन्म और मृत्यु के चक्र से परे है। वह स्वयं प्रकाशित है।”
- “यदि लोग भगवान द्वारा उन्हें दिए गए धन का उपयोग केवल अपने लिए या उसे जमा करने के लिए करते हैं, तो यह एक लाश के समान है। लेकिन अगर वे इसे दूसरों के साथ साझा करने का फैसला करते हैं, तो यह पवित्र भोजन बन जाता है।”
- “केवल मूर्ख ही बहस करते हैं कि मांस खाना है या नहीं। वे सत्य को नहीं समझते हैं, न ही वे उस पर ध्यान करते हैं। कौन परिभाषित कर सकता है कि मांस क्या है और पौधा क्या है? कौन जानता है कि पाप कहाँ है, शाकाहारी या मांसाहारी होना?”
- “सबसे बड़ा आराम और स्थायी शांति तब प्राप्त होती है जब कोई अपने भीतर से स्वार्थ को दूर कर देता है।”
- “जो भी बीज किसी खेत में बोया जाता है, नियत समय पर तैयार किया जाता है, उसी तरह का एक पौधा, बीज के विशिष्ट गुणों से चिह्नित, उसमें उगता है।”
- “रस्सी की अज्ञानता के कारण रस्सी सांप लगती है; स्वयं की अज्ञानता के कारण स्वयं के व्यक्तिगत, सीमित, असाधारण पहलू की क्षणिक स्थिति उत्पन्न होती है।”
- “राजा और सम्राट भी, जो संपत्ति के पहाड़ और धन के महासागरों के साथ हैं – ये एक चींटी के बराबर भी नहीं हैं, जो भगवान को नहीं भूलती हैं।”
- “बच्चों का उत्पादन, पैदा हुए बच्चों का पोषण और पुरुषों का दैनिक जीवन, इन मामलों में महिला स्पष्ट रूप से कारण है।”
- “स्वामी को आनंद के गीत गाओ, स्वामी के नाम की सेवा करो, और उसके सेवकों के सेवक बन जाओ।”
गुरु नानक(Guru Nanak) जी के ये उद्धरण हमें एक सरल, प्रेमपूर्ण और निस्वार्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके शब्द आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सदियों पहले थे। गुरु जी के मार्गदर्शन को अपनाकर हम सच्ची शांति और खुशी पा सकते हैं।